मैं चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ की हम तुम मिलें कहीं, युहीं अचानक,
किसी सफ़र में, सिनेमा घर में या रेस्तोरां में
कोई बात न हो, न सलाम दुआ,
फिर लौट जायें, खो जायें भीड़ भाड़ में ,
मैं चाहता हूँ, कोई पुराना हिसाब हो , जो बचा रहे,
जो मुझे याद रहे, जो तुम्हें याद रहे
मैं चाहता हूँ की हम तुम मिलें कहीं, युहीं अचानक,
राह चलते, उत्सव या फिर किसी बाज़ार में,
उस हिसाब की बात करें, और किसी निर्णय पर न पहुंचे
कोई नया हिसाब शुरू हो, फिर किसी दिन मिलने की आड़ में
कोई नया हिसाब शुरू हो, फिर किसी दिन मिलने की आड़ में
मैं चाहता हूँ हम तुम मिलते रहें , हिसाब चलते रहें ..
The inspiration of this poetry is embedded below:
“What I want is for the two of us to meet somewhere by chance one day, like, passing on the street, or getting on the same bus.”
— Murakami_fan (@haruki_tweets) September 5, 2013